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Tahzeeb Hafi

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इक हवेली हूँ उस का दर भी हूँ ख़ुद ही आँगन ख़ुद ही शजर भी हूँ

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ये कौन राह में बैठे है मुस्कुराते हैं मुसाफिरों को गलत रास्ता बताते हैं तेरे लगाये हुए जख्म क्यूँ नही भरते मेरे लगाये हुए पेड़ सूख जाते हैं..!! ~ तहज़ीब हाफ़ी


Kuch ese log Jo hath Mila len tu umr bhar hath se khushbo nahi jaati. 🌹❤️

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मैं चाहता हूँ परिंदे रिहा किये जाएँ मैं चाहता हूँ तेरे होंठ से हँसी निकले मैं चाहता हूँ तेरे हिज़्र में अजीब हो कुछ मैं चाहता हूँ चराग़ों से तीरग़ी निकले ~ तहज़ीब हाफ़ी


मुझसे मत पूछो कि मुझको और क्या-क्या याद है वो मेरे नज़दीक आया था बस इतना याद है मुझसे वो काफ़िर मुसलमाँ तो ना हो पाया कभी लेकिन उसको तर्जुमें के सात कलमा याद है ~ तहज़ीब हाफ़ी


ये दुख अलग है कि उससे मैं दूर हो रहा हूँ ये ग़म जुदा है वो ख़ुद मुझे दूर कर रहा है तेरे बिछड़ने पे लिख रहा हूँ मैं ताज़ा ग़ज़लें ये तेरा ग़म है जो मुझको मशहूर कर रहा है ~ तहज़ीब हाफ़ी


मुझ से मत पूछो के उस शख़्स में क्या अच्छा है अच्छे अच्छों से मुझे मेरा बुरा अच्छा है किस तरह मुझ से मुहब्बत में कोई जीत गया ये न कह देना के बिस्तर में बड़ा अच्छा है ~ तहज़ीब हाफी


तिज़ोरियों  पे  नज़र  और  लोग  रखते  हैं मैं आसमान चुरा लूंगा जब भी मौका लगा ये क़ायनात बनाई है एक ताजिर* नें यहां पे दिल नहीं लगना यहां पे पैसा लगा ~ तहज़ीब हाफ़ी [*ताजिर - सौदागर, Businessman ]


अश्क ज़ाया हो रहे थे..... देख कर रोता न था जिस जगह बनता था रोना मैं उधर रोता न था सिर्फ़ तेरी चुप ने मेरे गाल गीले कर दिये...!! मैं तो वो हूं जो किसी की मौत पर रोता न था ~ तहज़ीब हाफ़ी


किसी दरख़्त की हिद्दत में दिन गुज़ारना है किसी चराग़ की छाँव में रात करनी है वो फूल और किसी शाख़ पर नहीं खुलना वो ज़ुल्फ़ सिर्फ़ मिरे हाथ से सँवरनी है ~ तहज़ीब हाफ़ी


दिल मोहब्बत में मुब्तला हो जाए जो अभी तक न हो सका हो जाए दिल भी कैसा दरख़्त है 'हाफ़ी' जो तिरी याद से हरा हो जाए ~ तहज़ीब हाफ़ी


उसके हाथों में जो खंज़र है वो ज़्यादा तेज़ है और फिर बचपन से ही उसका निशाना तेज़ है आज उसके गाल चूमे हैं तो अंदाज़ा हुआ चाय अच्छी है...... थोड़ा सा मीठा तेज़ है ~ तहज़ीब हाफ़ी


जो मेरे साथ मोहब्बत में हुई आदमी एक दफ़ा सोचेगा रात इस डर में गुज़ारी हमने कोई देखेगा तो क्या सोचेगा ~ तहज़ीब हाफ़ी


और फिर एक दिन बैठे बैठे मुझे अपनी दुनिया बुरी लग गई जिसको आबाद करते हुए मेरे मां-बाप की ज़िंदगी लग गई #MothersDay ~ तहज़ीब हाफी


मैं ज़िन्दगी में आज पहली बार घर नहीं गया मगर तमाम रात दिल से माँ का डर नहीं गया ~ तहज़ीब हाफ़ी #MothersDay


मुझको दरवाज़े पर ही रोक लिया जाता है मेरे आने से भला आपका क्या जाता है तू अगर जाने लगा है तो पलट कर मत देख मौत लिखकर तो कलम तोड़ दिया जाता है ~ तहज़ीब हाफ़ी


ज़ेहन से यादों के लश्कर जा चुके वो मेरी महफ़िल से उठ कर जा चुके मेरा दिल भी जैसे पाकिस्तान है सब हुकूमत करके बाहर जा चुके ~ तहज़ीब हाफ़ी


Tahzeeb Hafi Reposted

हम मिलेंगे बाग़ में, गाँव में, धूप में, छाँव में, रेत मे, दश्त में, शहर में, मस्जिदों में, कलीसो में, मंदिर मे, मेहराब में, चर्च में, मूसलाधार बारिश में, बाज़ार में, ख़्वाब में, आग में, गहरे पानी में, गलियों में, जंगल में और आसमानों में.. @Tahzeebhafi1


सब परिंदों से प्यार लूँगा मैं पेंड़ का रूप धार लूंगा मैं तू अगर निशाने पे आ भी जाए तो कौन सा तीर मार लूँगा मैं ~ तहज़ीब हाफ़ी


क्या ख़बर उस रौशनी में और क्या रौशन हुआ जब वो इन हाथों से पहली मर्तबा रौशन हुआ वो मेरे सीने से लग कर जिसको रोई कौन था किसके बुझनें पर मैं उसकी जगह रौशन हुआ ~ तहज़ीब हाफ़ी


मैं उसे कब का भूल-भाल चुका ज़िंदगी है कि रो रही है मुझे मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ पहली बारिश ही आख़िरी है मुझे ~ तहज़ीब हाफ़ी


मैं दिल पे हाथ रख के तुझको शहर भेज दूँ मगर तुझे भी उन हवाओं ने अगर ख़राब कर दिया मैं क़ाफ़िले के साथ हूँ मगर मुझे ये खौफ़ है अगर किसी ने मेरा हमसफ़र ख़राब कर दिया ~ तहज़ीब हाफ़ी


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