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Prakash Prajapat

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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Meaning मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन उसमे बसने वाला आलस्य हैं | मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र उसका परिश्रम हैं जो हमेशा उसके साथ रहता हैं इसलिए वह दुखी नहीं रहता।।


अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् | उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् | अर्थात्: यह मेरा है, यह उसका है; ऐसी सोच संकुचित चित्त वाले लोगों की होती है इसके विपरीत उदारचरित्र वाले लोगों के लिए तो ये पूरी प्रथ्वी ही परिवार होती है।


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