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हम भारत के लोग, ये प्रण करें- हमारे लिए देशहित से बड़ा और कोई हित कभी नहीं होगा। हम भारत के लोग, ये प्रण करें- हमारे लिए देश की चिंता, अपनी खुद की चिंता से बढ़कर होगी। हम भारत के लोग, ये प्रण करें- हमारे लिए देश की एकता, अखंडता से बढ़कर कुछ नहीं होगा: PM


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स्वयं से मन को जीत पाना या वश मे रखना असम्भव है।पूर्व मेकितने ही ऋषि मुनि,तपस्वी हो चुके पर कही किसी को मन पर विजय प्राप्त करना नहीं आया।

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आपका प्रश्न सही है . लेकिन मैं भी जैन धर्म को बचपन से बहुत मानता आया हु और आज मुझे सही मायनो में उन principles पर चलाने वाला मिला है . बचपन से जो दुविधा और कन्फ़्यूज़न create हो गए थे वोह आज ख़त्म हो गए है . सही अर्थों में मुक्ति और मोक्ष की राह उस परमात्मा के सानिध्य में मिली


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माननीय प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी जी के आत्मनिर्भर अभियान को शक्ति देने के लिए स्वदेशी अपनाएं और भारत को आत्मनिर्भर बने ज्यादा से ज्यादा भारत के सामान को खरीदें ,भारत में लघु उद्योगों की पुनः स्थापना हो और भारत आत्मनिर्भर बने #अब_चीनी_बंद


" हे जीव" जिस प्रकार जिह्वा के स्वादके आकर्षण से मुक्त होने मात्रसे शरीर को वो भोजन प्राप्त होने लगता है जो शरीर के पोषण और स्वास्थ्य केलिए आवश्यक है। उसी प्रकार मन रूपी स्वादके आकर्षण से मुक्त होने पर आत्मा को परमात्मा रूपी पोषण व स्वास्थ्य और आनन्द सहज ही प्राप्त होने लगता है।


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youtu.be/tfypqaaT9Ys मेरे परिवर्तित जीवन की गाथा, पार्ट 10, Do watch and comment


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साकार स्वरूप में परमात्मा धरती पर जब मौजूद रहता है तभी निराकार का दर्शन सार्थक होता है। तभी आत्मा को मुक्ति और मोक्ष प्राप्त होता है ।


"मैंने परमात्मा दर्शन का निमंत्रण दिया है प्रदर्शन का नहीं" जीवन दर्शन में उतरो, जल्दबाजी में प्रभू के दर्शन करना चाहते हो, तो यह दर्शन नही प्रदर्शन होगा।


क्या करोगे पितरों, भूत प्रेतों, देवी देवताओं की सवारी बुलाकर या पूजा करके... क्या मिल जाएगा? अंत मे दुःख ही हाँथ लगेगा । सच्चा सुख, आनंद और समस्त दुःखो से मुक्ति चाहते हो तो अपने परमात्मा के शरण मे आओ अपनी आत्मा को जागृत करो।


"जिसे परमात्मा की खोज है, जिन्हें उनके दर्शन चाहिए वो मुझसे सम्पर्क करें'

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ये तंत्र, मन्त्र, ज्योतिष, कर्मकांड ये सभी विषय मन के छलावे हैं। यह आपको न आनंद दे सकते हैं न ये आपको दुःखो से मुक्ति दे सकते है। जो समस्त दुःखो से आपको मुक्त कर सकता है... वो आत्मा आपके अंदर ही विराजित है। वही आनंद मिलेगा। अपनी आत्मा को जागृत करो।


काम, क्रोध, लोभ, मोह भी मच्छर हीहै यह आपकी साधनासे प्राप्त पुण्य रूपी खूनको चूस कर आपको निस्तेज करदेते हैं। अतः मन रूपी मच्छर से दूर अपनी आत्माके शरणमे आओ, उसकी सुरक्षामें आओ, तुम्हारी आत्मा सीधे उस परमात्मा से जुड़ीहै। परमात्मा तुम्हारे लिए ऐसे सहज और सरल हैं जैसे कि सांस लेना


Kumar Gaurav Reposted

कुरबतो का मुकाम है रूबरू हो मिलन में, इनायत का मुकाम है कुबूल हो जाने में, इश्क का मुकाम है इकरार से लूट जाने में, प्रभु आप से अनुराग का मुकाम है, आप में घुल जाने में! सानीका🙏🏻🙏🏻🙏🏻


इंसानों को हमेशा इंसानों सेही खतरा है. इसलिए हमेशा प्रभू भक्ति की नौका पर बैठेरहो. मृत्यू किसी की भी कभी हो सकती है. अगले क्षण का कोई भरोसा नही. मृत्यू सिर्फ किसी वायरस के भरोसे थोड़े न बैठाहै! इसलिए जितना भी समय जीवन का मिलाहै ईश्वरको धन्यवाद करतेहुए आत्मजागरण व आत्मकल्याण कर लो


सुनिये इस छोटी बच्ची की अनुभूति... जिसने साक्षात उस प्रभु, उस परमात्मा का दर्शन और उसकी करुणा की अनुभूति किया है। और जिसने भी उस परमात्मा को जान है वो भी इसके भांति ही निडर व बेहिचक कह सकते है कि..."हाँ मैंने उसे जाना है... तुम चाहो तो तुमको भी उस परमात्मा के दर्शन करवा सकते है"


उन्नीस सौ की जनवरी माह में जब बिरसा जी एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे उस जगह पर अंग्रेजों ने उन पर और उनके साथियों पर हमला कर दिया जिसमें उनके कई साथी गिरफ्तार हो गए और उनकी ही जाति के दो लोगों ने जासूसी कर के उन्हें पकड़वा दिया। #BhagwanBirsaMunda


बिरसा जी की जड़ी-बूटियों का भी बहुत अच्छा ज्ञान था। एक गांव में फैली महामारी तथा एक अन्य गांव से भयंकर चेचक के प्रकोप में लोगों की चिकित्सा कर उससे सभी को मुक्त किया था। #BhagwanBirsaMunda


आज के ईस्वी सन का मूल रोमन संवत है| यह ईसाके जन्मके 753 वर्ष पूर्व रोम नगरकी स्थापनासे प्रारम्भ हुआ| तब इसमें 10माह थे (मार्च से दिसम्बर तक)| वर्ष 304 दिन का था। बाद में रजा नूमा पिम्पोलिय्सने 2माह (जनवरी,फरवरी) जोड़ दिए तबसे वर्ष 12माह अर्थात 355 दिनका होगया| #BhartiyaNavVarsh


कलेंडर रिफार्म कमेटी ने विक्रम संवत को राष्ट्रीय संवत बनाने की सिफारिश की| वास्तव में विक्रम संवत, ईसा संवत से 57 साल पुराना था|लेकिन दुर्भाग्यवश जैसा हमेशा होता आया है.शोध उपेक्षित रहा, स्वार्थ अपेक्षित होगया अंग्रेजी मानसिकता के नेतृत्त्व को यह पसंद नहीं आया|| #BhartiyaNavVarsh


परस्पर मित्रों, सम्बन्धियों, सज्जनों का सम्मान, उपहार, गीत, वाध्य, नृत्य से सामूहिक आन्दोत्सव मनाना चाहिए तथा परस्पर भेदों को साथ मिल बैठकर समाप्त करना चाहिए| चूँकि यह ब्रह्मा द्वारा घोषित सर्वश्रेष्ठ तिथि है इसको प्रथम पद मिला है, इसलिए इसे प्रतिपदा कहते हैं| #BhartiyaNavVarsh


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